जब जाम हो जाएं घुटने

जब जाम हो जाएं घुटने

डॉक्‍टर राजू वैश्‍य

हड्डियों से जुड़ी समस्‍याओं में घुटने का जाम हो जाना या नी स्टिफनेस एक आम समस्‍या है। आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ ये समस्‍या बढ़ती है मगर कई बार घुटने के टूटने अथवा उनमें संक्रमण होने, हड्डियों का टीबी होने या किसी वजह से लंबे समय तक प्‍लास्‍टर चढ़े होने के कारण घुटनों के जाम होने की समस्‍या हो सकती है। प्‍लास्‍टर चढ़े होने के कारण टूटी हड्डी जुड़ तो जाती है मगर पैरों का पर्याप्‍त व्‍यायाम नहीं करने के कारण उनमें गतिशीलता नहीं आ पाती है और घुटने जाम हो जाते हैं। इस स्थिति को नी स्टिफनेस कहते हैं। एक से अधिक सर्वे ये बताते हैं कि भारत की करीब-करीब 25 फीसदी आबादी घुटने की किसी न किसी तकलीफ से पीड़‍ित है।

लक्षण

नी स्टिफनेस ऐसी स्थिति है जिसमें घुटने बिलकुल नहीं मुड़ते हैं और पैर एकदम सीधे रहते हैं। कुछ मरीजों को घुटने मोड़ने की कोशिश करने और घुटने हिलाने डुलाने पर दर्द होता है। इसके कारण रोगी न तो चल पाता है और नही बैठ पाता है।

कारण

घुटना जाम की स्थिति आम तौर पर घुटनों में संक्रमण या घाव होने, उनमें चोट लगने या फ्रैक्‍चर हो जाने के कारण होता है। घुटनों में संक्रमण युवा, बुजुर्ग, बच्‍चे किसी को भी हो सकता है। संक्रमण के बाद घुटने में सूजन और दर्द जैसी समस्‍याएं हो सकती हैं। मरीज को बुखार भी रह सकता है। घुटने में संक्रमण के बाद रक्‍त कोशिकाओं की संख्‍या बढ़ जाती है। इसका इलाज यथाशीघ्र करा लेना चाहिए। इलाज नहीं कराने पर घुटने में मवाद बन जाता है और मवाद घुटने के आखिरी हिस्‍से की हड्डी को ढकने वाली कार्टिलेज को पूरी तरह से घुला देता है। कार्टिलेज नष्‍ट हो जाती है तो हड्डी का आखिरी सिरा बाहर निकल आता है, जिससे घुटने के जोड़ के हिलने-डुलने पर घुटने में अत्‍यधिक दर्द होता है और मरीज को चलने में तकलीफ होती है।

जांच

घुटने के जोड़ में संक्रमण का सबसे सामान्‍य कारण तपेदिक या टीबी है। इसका पता मॉन्‍टोक्‍स टेस्‍ट, छाती का एक्‍स रे, ब्‍लड टेस्‍ट आदि से चल जाता है। मॉन्‍टोक्‍स जांच के तहत त्‍वचा के अंदर एक सूई दी जाती है और 72 घंटे के बाद इसकी प्रतिक्रिया का निरीक्षण किया जाता है। यदि सूई लगाने के 20 मिलीमीटर के क्षेत्र में त्‍वचा के लाल होने जैसी कोई प्रतिक्रिया होती है तो समझा जाता है कि संबंधित व्‍यक्ति टीबी से ग्रस्‍त है। जोड़ में संक्रमण का इलाज इसके कारण पर निर्भर करता है। इसके लिए आमतौर पर एंटीबायोटिक दवा दी जाती है।

कई बार घुटने में चोट लग जाने पर जोड़ अलग हो जाते हैं या हड्डियां टूट जाती हैं। ऐसी स्थिति में चिकि‍त्‍सक तीन से छह महीने के लिए पैर में प्‍लास्‍टर या पट्टियां चढ़ा देते हैं। इससे मांसपेशियां और लिगामेंट्स संकुचित हो जाते हैं। अकसर देखा गया है कि मरीज प्‍लास्‍टर हटने के बाद घुटने की एक्‍सरसाइज नहीं करते हैं क्‍योंकि एक्‍सरसाइज करने से घुटने में दर्द होता है जबकि घुटने को स्थिर रखने से आराम मिलता है लेकिन इससे घुटने के तंतु शिथिल पड़ जाते हैं मज्‍जा तितर बितर हो जाती है और न स्टिफनेस होने की आशंका हो जाती है।

नी स्टिफनेस का एक अन्‍य कारण है आर्थराइटिस। आर्थराइटिस के मरीज अपने घुटने को आमतौर पर सीधा ही रखते हैं क्‍योंकि घुटने मोड़ने में दर्द होता है। कुछ सप्‍ताह या कुछ महीने के बाद उनका घुटना इसी स्थिति में फ‍िक्‍स हो जाता है और मुड़ता नहीं है।

उपचार

नी स्टिफनेस के उपचार के लिए कई बार सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। यह सर्जरी रोगी की उम्र, हड्डी की स्थिति, लिगामेंट्स की मजबूती आदि पर निर्भर करती है। इसके लिए पेशियों को बदलना पड़ता है। कई बार तो घुटने के कार्टिलेज और उत्‍तकों को बदलना पड़ता है। यह एक कठिन सर्जरी है और इसमें देर नहीं करनी चाहिए क्‍योंकि सर्जरी में देर करने से बेहतर परिणाम नहीं मिलते हैं।

(प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित किताब फैमिली हेल्‍थ गा‍इड से साभार)

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